शनिवार, 8 नवंबर 2008

क्या हुक्मरानों को मालूम है नो फ्रिल एकाउंट की हकीकत ?

गरीब-गुरबों के कल्याण की आकर्षक योजनायें या तो पंचतारा होटलों में आयोजित होने वाले सम्मेलनों में नज़र आती हैं या फिर मंत्रालयों की उपलब्धियों वाले सरकारी विज्ञापनों में। मंत्रालयों के दस्तावेजों से होते हुए लालफीताशाही, अफसरशाही तक गुजरते और बाबूशाही तक आते-आते यह योजनायें इस तरह से दम तोड़ देती हैं कि बाबुओं को यह पता ही नही होता कि ऐसी कोई योजना है भी या नहीं। गरीबों के लिए एक ऐसी ही योजना है बैंकों में आसानी से खाता खोलने की नो फ्रिल एकाउंट योजना। दैनिक भास्कर के संवाददाताओं ने जब सत्ता के केन्द्र दिल्ली में इस तरह का एकाउंट खोलना चाहा तो उन्हें जिस तरह के कड़वे अनुभवों से गुजरना पड़ा, उससे यह आसानी से समझा जा सकता है कि सरकारी एलान का क्रियान्वयन किस तरह से होता है । इन संवाददाताओं के लिए सबसे पीड़ादायी बात यह रही कि हर जगह उन्हें इसके लिए हतोत्साहित किया गया और यह सलाह दी गयी कि नो फ्रिल एकाउंट की जगह कोई और खाता खोल लें । देश की राजधानी में रहने वाले शिक्षित संवाददाताओं का अगर ये अनुभव है तो अनपढ़ ग्रामीणों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। - दैनिक भास्कर में २२ नवम्बर २००६ को प्रकाशित ख़बर का इंट्रो

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