बुधवार, 17 जून 2009

आईटी, टेलीकाॅम और आॅटोमोबाइल के नए हब के रूप में उभर रहा है चेन्नई

चेन्नई अपने बलुई मिट्टी से भरे समुद्र तटों, तमिल फिल्म इंडस्ट्री और तमिल कला एवं संस्कृति के केंद्र के लिए मशहूर है। यदि आप कभी चेन्नई गए होंगे तो आपको मरीना बीच पर बिकने वाले समुद्री मछलियों के कुरकुरे पकौड़े जरूर पसंद आए होंगे। चेन्नई को देश के अन्य महानगरों के अपेक्षाकृत कंजर्वेटिव माना जाता है, पर अब यह शहर अपनी पुरातन छवि से अलग देश के नए मैन्युफैक्चरिंग केंद्र के रूप में उभर रहा है। यूपीए सरकार के दो हाई प्रोफाइल मंत्री तमिलनाडु से हैं, पर यदि चेन्नई यदि तेजी से विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर रहा है तो इसमें उसकी अपनी कई विशेषताओं का भी योगदान है। दैनिक भास्कर में 25 फरवरी, 2007 को प्रकाशित खबर का इंट्रो

डीजल ने जमाया रंग

खड़खड़ाहट की आवाज, काला धुंआ, शोर इतना कि आप पास बैठे लोगों से ठीक से बात भी न कर सकें। परंपरागत डीजल इंजन वाले वाहनों के बारे में भारत में लोगों की धारणा कुछ ऐसी ही थी। लेकिन यूरोप से चल कर भारत पहुंचने वाले अत्याधुनिक और उन्नत इंजनों ने तो भारतीय कार बाजार की पूरी दुनिया ही बदल दी है। यहां शोर और धंुआ कल्पना की चीजें हैं, अगर कुछ है तो ताकत और किफायत जैसी विशेषताएं। इन विशेषताओं की वजह से ही यूरोप में डीजल इंजन वाले कारों का बाजार के पचास फीसदी हिस्से से ज्यादा हिस्स्से पर कब्जा हो चुका है। डीजल कारों की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से भारत के अमूमन सभी कार उत्पादकों का नया मंत्र है-डीजल अपनाओ, बिक्री बढ़ाओ। दैनिक भास्कर में 4 फरवरी 2007 को प्रकाशित खबर का इंट्रो

शनिवार, 15 नवंबर 2008

नैन-नक्श देखकर कार खरीदती हैं महिलाएं

नया वाहन खरीदने के मामले में भारतीय पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा सावधानी बरतती हैं और कई मॉडल अच्छी तरह देख-परख कर ही अन्तिम फ़ैसला करती हैं। पुरूष कोई वाहन खरीदने के लिए बहुत खोजबीन नहीं करते और जल्दी ही कोई मॉडल पसंद कर लेते हैं। जे डी एशिया-पैसिफिक २००६ के एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है। इस मामले में होंडा-सिएल कार्स इंडिया की एजीएम अनीता शर्मा का कहना है की महिलाएं अक्सर हर चीज की खरीदारी बड़े ही एहतियात के साथ करती हैं और इस मामले में कार भी अपवाद नहीं हैं।

शनिवार, 8 नवंबर 2008

एकता कपूर से खफा हैं पाकिस्तानी मर्द

पाकिस्तानी पुरुषों को एकता कपूर से काफी शिकायतें हैं। उनका सवाल है कि क्या हिंदुस्तान का कल्चर वाकई ऐसा हो गया है , जैसा एकता कपूर के सीरिअल्स में दिखता है? एक मर्द का चार औरतों से रिश्ता और चार बार शादी ....सार्क सम्मलेन के अवसर पर दिल्ली आए पाकिस्तानी कारोबारी भास्कर से बातचीत में यह सवाल उठाते हैं। पर औरतें बताती हैं कि स्टार प्लस के सीरियल पाकिस्तानी औरतों और बच्चों के दिलो-दिमाग पर पूरी तरह हावी हैं। पाकिस्तानी बुजुर्ग तो उलाहना देते हैं कि स्टार प्लस के सीरिअलों से बच्चे इस कदर हिन्दी सीख जा रहे हैं कि उन्हें हिंदुस्तान जाने पर कोई दिक्कत नहीं आयेगी। -दैनिक भास्कर में छपी ख़बर का इंट्रो

क्या हुक्मरानों को मालूम है नो फ्रिल एकाउंट की हकीकत ?

गरीब-गुरबों के कल्याण की आकर्षक योजनायें या तो पंचतारा होटलों में आयोजित होने वाले सम्मेलनों में नज़र आती हैं या फिर मंत्रालयों की उपलब्धियों वाले सरकारी विज्ञापनों में। मंत्रालयों के दस्तावेजों से होते हुए लालफीताशाही, अफसरशाही तक गुजरते और बाबूशाही तक आते-आते यह योजनायें इस तरह से दम तोड़ देती हैं कि बाबुओं को यह पता ही नही होता कि ऐसी कोई योजना है भी या नहीं। गरीबों के लिए एक ऐसी ही योजना है बैंकों में आसानी से खाता खोलने की नो फ्रिल एकाउंट योजना। दैनिक भास्कर के संवाददाताओं ने जब सत्ता के केन्द्र दिल्ली में इस तरह का एकाउंट खोलना चाहा तो उन्हें जिस तरह के कड़वे अनुभवों से गुजरना पड़ा, उससे यह आसानी से समझा जा सकता है कि सरकारी एलान का क्रियान्वयन किस तरह से होता है । इन संवाददाताओं के लिए सबसे पीड़ादायी बात यह रही कि हर जगह उन्हें इसके लिए हतोत्साहित किया गया और यह सलाह दी गयी कि नो फ्रिल एकाउंट की जगह कोई और खाता खोल लें । देश की राजधानी में रहने वाले शिक्षित संवाददाताओं का अगर ये अनुभव है तो अनपढ़ ग्रामीणों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। - दैनिक भास्कर में २२ नवम्बर २००६ को प्रकाशित ख़बर का इंट्रो